This Indian Woman Escaped From Taliban 30 Years Before The Diplomat Know One More Story Like Uzma Ahmed 8000289#publisher=newsstand

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जॉन अब्राहम स्टारर मूवी 'द डिप्लोमैट' 14 मार्च को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज हुई. फिल्म की कहानी एक भारतीय लड़की उजमा अहमद पर आधारित है, जिसे भारतीय डिप्लोमैट पाकिस्तान से बचाकर भारत वापस लाते हैं.

नई दिल्ली:

जॉन अब्राहम स्टारर मूवी 'द डिप्लोमैट' 14 मार्च को देशभर के सिनेमाघरों में रिलीज हुई. फिल्म की कहानी एक भारतीय लड़की उजमा अहमद पर आधारित है, जिसे भारतीय डिप्लोमैट पाकिस्तान से बचाकर भारत वापस लाते हैं. हालांकि, यह पहली घटना नहीं है, जब कोई भारतीय महिला विषम परिस्थितियों को पार करते हुए सफलतापूर्वक भारत लौटी हो. उजमा से करीब 22 साल पहले सुष्मिता बनर्जी तालिबानी प्रताड़ना के जाल को तोड़ते हुए तीसरी कोशिश में सही सलामत वापस भारत लौटने में कामयाब हुई थी.

कोलकाता की रहने वाली ब्राह्मण सुष्मिता बनर्जी को थियेटर रिहर्सल के दौरान अफगानी मनीलेंडर जांबाज खान से प्यार हो गया. यह साल 1986 की बात है जब कुछ ही मुलाकातों में सुष्मिता अपना दिल जांबाज खान को दे बैठी. स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत दोनों ने 2 मार्च 1988 को शादी कर ली. शादी के बाद सुष्मिता अफगानिस्तान के पकटिका प्रांत में अपने पति के साथ रहने लगी लेकिन तीन साल के अंदर जांबाज अपने मनीलेंडिंग काम के चलते पत्नी को कुछ भी बताए बिना वापस भारत आ गया.

पति के घरवालों ने किया प्रताड़ित

सुष्मिता जब अफगानिस्तान में अपने पति के घर पहुंची तो पता चला कि वह जांबाज खान की दूसरी पत्नी है. सुष्मिता से करीब 10 साल पहले जांबाज गुलगुट्टी नाम की महिला से शादी कर चुका था. पति के जाने के बाद सुष्मिता के सास-ससुर और तीन देवरों ने उसे शारीरिक और मानसिक दोनों स्तर पर काफी प्रताड़ित किया, जिससे तंग होकर उसने अपने देश वापस लौटने का मन बना लिया. हालांकि, यह इतना आसान नहीं था. दो असफल कोशिशों के बाद तीसरी बार में सुष्मिता को सफलता हासिल हुई.

इस तरह बच निकली सुष्मिता

गांव के एक शुभचिंतक की मदद से सुष्मिता ने जीप का इंतजाम कर पाकिस्तान के इस्लामाबाद तक पहुंचने का बंदोबस्त किया. इस्लामाबाद पहुंच कर उसने भारतीय हाई कमिशन का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उसे बड़ा झटका लगा क्योंकि कमिशन ने उसे वापस तालिबान को सौंप दिया. सुष्मिता ने हिम्मत नहीं हारी और एक बार फिर वहां से भागने का प्लान बनाया. उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि दूसरी बार वह पूरी रात भागती रही, लेकिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. तालिबान ने सुष्मिता के खिलाफ फतवा जारी कर दिया और 22 जुलाई 1995 को उनकी मौत होने ही वाली थी.

एके-47 से दो तालिबानियों को मार गिराया

गांव के प्रमुख चाचा ने तीसरी बार तालिबान से बच निकलने में सुष्मिता की मदद की. सुष्मिता ने अपने संस्मरण में लिखा था कि तीसरी बार वहां से निकलने के दौरान उन्होंने एके-47 उठाया और तीन तालिबानियों को मौत के घाट उतार दिया. इसके बाद चाचा ने एक जीप से काबुल तक पहुंचने में सुष्मिता की मदद की. काबुल पहुंचते-पहुंचते सुष्मिता को तालिबानियों ने गिरफ्तार कर लिया. 15 सदस्यीय ग्रुप सुष्मिता से पूरी रात पूछताछ करता रहा. वह तालिबानियों को भारतीय होने की बात और इस हक से देश वापसी के अधिकार को लेकर मनाने में कामयाब रही. अगली सुबह उसे भारतीय दूतावास ले जाया गया, जिसके बाद वह सुरक्षित दिल्ली एयरपोर्ट पहुंची और फिर अपने होम टाउन कोलकाता पहुंची.


 

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